प्रेस विज्ञप्ति
बड़ी समस्याएं कभी विषय नहीं बन पायी।ऐसे में प्रतिरोध का सिनेमा हमें अपनी असलियत से परिचित कराता है।हमें यथार्थ के करीब ले जाता है।तकनिकी विकास के बूते अब बहुत सस्ते में फिल्म निर्माण संभव हुआ है।हमें अपनी बात को कहने का एक सशक्त माध्यम मिला है।
यह विचार एक्टिविस्ट फ़िल्मकार और प्रतिरोध का सिनेमा के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने विजन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में आयोजित फिल्मोत्सव के दौरान अपने मुख्य वक्तव्य में कहे।शुरुआत में सोसायटी से जुड़े डॉ. साधना मंडलोई, भंवर लाल सिसोदिया, डॉ. ए.एल.जैन ने वक्ताओं को प्रतीक चिन्ह भेंट करके स्वागत किया। इस मौके पर जन गीतों की प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत हुयी जिनमें प्रसिद्द गीतकार रमेश शर्मा ने लोहार गली में घर है,अब्दुल ज़ब्बार ने मोड सकता है तू ज़िंदगी के पथ पेश किया। संयम पुरी,दीपमाला कुमावत,भारती कुमावत,पूरण रंगास्वामी ने ले मशाले चल पड़े हम जैसा गीत सुनाकर सभी को रोमांचित कर दिया।
इस अवसर पर प्रस्तुत ओरियंटेशन में संजय जोशी ने सिनेमा के इतिहास,भाषा, तकनिकी को लेकर कई तथ्यों और उदाहरणों के साथ सभी को बांधे रखा।उन्होंने कई फिल्मों के अंश स्क्रीन किए जिनमें ए चेयरी टेल, पथेर पंचाली,उस्ताद अल्लाउदीन,हमारा शहर बम्बई,शीट जैसी फ़िल्में शामिल थी। तीन घंटे तक चले इस सिनेमा केन्द्रित विमर्श में फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही जोशी ने उनके महत्व पर भी प्रकाश डाला।बाद के सत्र में उदयपुर फ़िल्म सोसायटी के संयोजक शैलेन्द्र प्रताप सिंह भाटी ने अपने शहर में इसी आन्दोलन की मुश्किल शुरुआत से लेकर बाद के दो सालों के अनुभव सूत्र रूप में सभी को सुनाएं। आखिर में एक सत्र दर्शकों के साथ संवाद का रखा गया जिसमें श्रमिक नेता घनश्याम सिंह राणावत, सामाजिक कार्यकर्ता खेमराज चौधरी, शिक्षक बाबू खां मंसूरी ने विचार व्यक्त करते हुए प्रतिरोध की इस सिनेमा संस्कृति और चित्तौड़गढ़ में इसके आगाज़ को ज़रूरी करार देते हुए सराहा। विजन कॉलेज की रूचि बोस, बंशी लाल और उदयपुर फ़िल्म सोसायटी के संयोजन में आयोजन स्थल पर पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गयी। इसी तरह स्क्रीनिंग के बाद दर्शकों ने अपनी राय एक प्रतिक्रया बोर्ड पर लिखकर भी जताई।दो दिवसीय इस फेस्टिवल में विद्यार्थियों ने पहले सत्र में बहुत उत्साह के साथ हिस्सा लिया जिनमें उदयपुर के सोलह विद्यार्थी भी शामिल हैं।
सोसायटी के लक्ष्मण व्यास ने कहा कि सोलह नवम्बर रविवार की सुबह ग्यारह बजे मुख्य और समापन सत्र सेन्ट्रल एकेडमी स्कूल में होगा जहां संजय जोशी के साथ ही आमंत्रित वक्ताओं में शामिल डूंगरपुर से हिंदी के युवा समालोचक हिमांशु पंड्या,अपनी माटी पत्रिका के सह सम्पादक कालू काल कुलमी भी शिरकत करेंगे।इस अंतिम सत्र में शहर के कई बुद्धिजीवी और युवा शामिल होंगे।
असुविधाजनक सवालों से उपजता है प्रतिरोध का सिनेमा-संजय जोशी
हमारी असलियत से परिचित करता है प्रतिरोध का सिनेमा-संजय जोशी
हमारी असलियत से परिचित करता है प्रतिरोध का सिनेमा-संजय जोशी
चित्तौड़गढ़ 15 नवम्बर 2014
हमारा भारतीय सिनेमा अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर चुका है।इसके शुरुआती दशकों को छोड़ दें तो हम पाएंगे कि यह बड़ा मायावी किस्म का संसार रचता है। हम वैसी फ़िल्में देखकर अपने यथार्थ से दूर होते होते जाते हैं।मुख्य धारा के सिनेमा का अपना बड़ा बाज़ार है और उसमें लगी बड़ी पूंजी अपने स्वार्थ के हिसाब से सिनेमा बनाती और दिखाती है। इधर लगातार हमने पाया है कि सिनेमा से किसान, दलित, स्त्री और पिछड़ा वर्ग गायब है। सामाजिक भेदभाव, विकास के लिए निर्माण के बाद पुनर्वास, जातिवाद, साम्प्रदायिकता जैसी
यह विचार एक्टिविस्ट फ़िल्मकार और प्रतिरोध का सिनेमा के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने विजन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में आयोजित फिल्मोत्सव के दौरान अपने मुख्य वक्तव्य में कहे।शुरुआत में सोसायटी से जुड़े डॉ. साधना मंडलोई, भंवर लाल सिसोदिया, डॉ. ए.एल.जैन ने वक्ताओं को प्रतीक चिन्ह भेंट करके स्वागत किया। इस मौके पर जन गीतों की प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत हुयी जिनमें प्रसिद्द गीतकार रमेश शर्मा ने लोहार गली में घर है,अब्दुल ज़ब्बार ने मोड सकता है तू ज़िंदगी के पथ पेश किया। संयम पुरी,दीपमाला कुमावत,भारती कुमावत,पूरण रंगास्वामी ने ले मशाले चल पड़े हम जैसा गीत सुनाकर सभी को रोमांचित कर दिया।
इस अवसर पर प्रस्तुत ओरियंटेशन में संजय जोशी ने सिनेमा के इतिहास,भाषा, तकनिकी को लेकर कई तथ्यों और उदाहरणों के साथ सभी को बांधे रखा।उन्होंने कई फिल्मों के अंश स्क्रीन किए जिनमें ए चेयरी टेल, पथेर पंचाली,उस्ताद अल्लाउदीन,हमारा शहर बम्बई,शीट जैसी फ़िल्में शामिल थी। तीन घंटे तक चले इस सिनेमा केन्द्रित विमर्श में फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही जोशी ने उनके महत्व पर भी प्रकाश डाला।बाद के सत्र में उदयपुर फ़िल्म सोसायटी के संयोजक शैलेन्द्र प्रताप सिंह भाटी ने अपने शहर में इसी आन्दोलन की मुश्किल शुरुआत से लेकर बाद के दो सालों के अनुभव सूत्र रूप में सभी को सुनाएं। आखिर में एक सत्र दर्शकों के साथ संवाद का रखा गया जिसमें श्रमिक नेता घनश्याम सिंह राणावत, सामाजिक कार्यकर्ता खेमराज चौधरी, शिक्षक बाबू खां मंसूरी ने विचार व्यक्त करते हुए प्रतिरोध की इस सिनेमा संस्कृति और चित्तौड़गढ़ में इसके आगाज़ को ज़रूरी करार देते हुए सराहा। विजन कॉलेज की रूचि बोस, बंशी लाल और उदयपुर फ़िल्म सोसायटी के संयोजन में आयोजन स्थल पर पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गयी। इसी तरह स्क्रीनिंग के बाद दर्शकों ने अपनी राय एक प्रतिक्रया बोर्ड पर लिखकर भी जताई।दो दिवसीय इस फेस्टिवल में विद्यार्थियों ने पहले सत्र में बहुत उत्साह के साथ हिस्सा लिया जिनमें उदयपुर के सोलह विद्यार्थी भी शामिल हैं।
सोसायटी के लक्ष्मण व्यास ने कहा कि सोलह नवम्बर रविवार की सुबह ग्यारह बजे मुख्य और समापन सत्र सेन्ट्रल एकेडमी स्कूल में होगा जहां संजय जोशी के साथ ही आमंत्रित वक्ताओं में शामिल डूंगरपुर से हिंदी के युवा समालोचक हिमांशु पंड्या,अपनी माटी पत्रिका के सह सम्पादक कालू काल कुलमी भी शिरकत करेंगे।इस अंतिम सत्र में शहर के कई बुद्धिजीवी और युवा शामिल होंगे।
डॉ.ए.एल.जैन,साथी चित्तौड़गढ़ फिल्म सोसायटी
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