प्रेस विज्ञप्ति
हमारे ही यथार्थ से परिचित कराता है प्रतिरोध का सिनेमा-व्यास
फ़ीचर फ़िल्म मालेगाँव का सुपरमेन की स्क्रीनिंग
फ़ीचर फ़िल्म मालेगाँव का सुपरमेन की स्क्रीनिंग
चित्तौड़गढ़ 27 सितम्बर 2014
चित्तौड़गढ़ फिल्म सोसायटी द्वारा आयोजित शुरुआती कार्यक्रम विजन स्कूल ऑफ़ मेनेजेमेंट संस्थान में सताईस सितम्बर दोपहर बारह बजे फिल्मकार फैज़ा अहमद खान निर्देशित फीचर फिल्म मालेगाँव का सुपरमेन की स्क्रीनिंग के रूप में सफल रहा।प्रतिरोध का सिनेमा के एक नए संस्करण के तहत संपन्न यह स्क्रीनिंग चित्तौड़ के लगभग दो सौ युवाओं और कई नगरवासियों के लिए नया और अनोखा अनुभव साबित हुई।आज तक देखे मुख्यधारा के सिनेमा संसार से एकदम जुदा किस्म की फिल्म ने सभी दर्शकों को इस बात के लिए राजी कर लिया कि सिनेमा निर्माण बहुत आसान और कम संसाधनों में भी संभव है।एक तरफ हमारे दैनिक जीवन में से लगातार गायब होते हास्य-विनोद को भी इस फिल्म ने बनी बनायी परिभाषाओं से बाहर निकल नए ढंग से अपना विषय बनाया है वहीं दूसरे तरफ यह फिल्म हमें दिखाती है कि मालेगाँव की हकीक़त में लूम के कारीगरों की माली हालत और उस पर बाज़ार का दबाव भी एक मुद्दा है।करोड़ों में खेलती सिनेमा इंडस्ट्री से मोहभंग होते और आखिर में उसे नकार मुम्बई के बजाय मालेगाँव में ही रहने को चुनने वाले फिल्म के एक-दो किरदार के संवादों ने गहरी चोट की हैं।
एक घंटे की इस स्क्रीनिंग में बतौर विशेषज्ञ शामिल हुए आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने कहा कि सिनेमा की यह धारा बहुत ही अनौपचारिक ढंग से छोटे-छोटे समूह में की गयी अपनी स्क्रीनिंग के ज़रिये एक विचार को पुष्ट करती है ताकि तमाम बड़ी शक्तिओं को आज की युवा पीढी अपने ढंग से समझना शुरू करे।कोर्पोरेट स्पोंसरशिप को नकारते हुए जन सिनेमा के कोंसेप्ट को अपनाती यह धारा हमारे शहर में नए और जनपक्षधर आयोजन करने को प्रतिबद्ध है।प्रसिद्द फिल्मकार और एक्टिविस्ट संजय जोशी के नेतृत्व में चले इस अभियान में हम देखते हैं कि यह आन्दोलन अपने बेहतर विचार और सफ़र में लगातार साथ देते दस्तावेज़ी फिल्मकारों की बदौलत बीते एक दशक में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा है।इस मौके पर सोसायटी के साथी शिक्षाविद डॉ.ए.एल . जैन ने कहा कि हम हिन्दुस्तानी व्यक्तिकेंद्रित बने रहने के इतने आदी हो गए हैं कि हमारे विचार में समाज और देश हित के बड़े और ज़रूरी मसले प्राथमिकता से आगे नहीं आते हैं।हम युवाओं को इस चौतरफा संघर्ष में बहुत सोच विचार के साथ अपनी भूमिका तय करनी होगी।बदलते दौर में सिनेमा भी एक हथियार की तरह उपयोग किया जा सकता है इस बात को ठीक से आँकना होगा।
स्क्रीनिंग के अवसर पर कॉलेज निदेशक डॉ. साधना मंडलोई ने अतिथियों का स्वागत कर उनका परिचय दिया।चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी से जुड़े साथी माणिक ने इस अभियान के मौलिक सिद्धांत और इसकी एतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला।स्क्रीनिंग के बाद उपस्थित दर्शकों ने आपसी संवाद और चर्चा में खुलकर हिस्सा लिया।अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के चित्तौड़ प्रभारी मुहम्मद उमर, नन्द किशोर निर्झर, एडवोकेट सुनीत कुमार श्रीमाली, स्पिक मैके सचिव संयम पुरी, विद्यार्थी आकांक्षा नागर,प्रोफ़ेसर रीना ननवानी ने प्रमुख रूप से इस फिल्म और सिनेमा की इस नयी परम्परा की तारीफ़ करते हुए कई मुद्दों पर अपनी राय ज़ाहिर की जिससे सार्थक माहौल बना।कई नए साथियों ने प्रतिरोध का सिनेमा अभियान से जुड़ने और सोसायटी में हिस्सेदारी के लिए अपने पंजीकरण भी करवाए।स्क्रीनिंग में कोमल जोशी, रूचि बोस, रमन प्रजापत, देवेन्द्र पालीवाल ने सक्रीय भूमिका निभाई।
डॉ. साधना मंडलोई,निदेशक,विजन स्कूल ऑफ़ मेनेजमेंट,चित्तौड़गढ़
फोटो रिपोर्ट
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