प्रेस विज्ञप्ति
बहुत अफसोसजनक तथ्य तो यही है कि हमारे भारतीय हिंदी सिनेमा के सौ सालों के अतीत में कुछ गिनी चुनी फ़िल्में ही हैं जो हमारे गाँव, गरीब और साहित्य को कवर करती हुई हममें तार्किकता पैदा कर सकी हैं।हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहां जनता की मांग का बहाना बनाकर सबकुछ मनोरंजक और रंगारंग किस्म के वातावरण में बदला जा रहा है। बहुत कम बजट के साथ क़ैद जैसी फिल्मों का निर्माण और उनकी स्क्रीनिंग को मिली सराहना आज आशा जगाती है कि सार्थक सिनेमा सिर्फ़ धन के बल पर ही नहीं बल्कि ज़ज्बे से बनता है और उसे ठीक से प्रस्तुत किया जाए तो आमजन को अपील भी करता है। अंधविश्वासों और आस्था के इस बाज़ारी युग में ऐसी फ़िल्में हमारी दिशा साफ़ करती नज़र आयी है। अंधानुकरण के इस युग में अध्यापक जैसी नौकरी में चयन की अकादमिक योग्यताओं को लेकर पुनर्विचार किया जाना चाहिए क्योंकि विद्यार्थी का समग्र विकास एक बेहतर समझ वाला अध्यापक ही कर सकता है।
यह विचार चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी के सलाहकार डॉ.ए.एल.जैन ने अठाईस फरवरी शनिवार की शाम सैनिक स्कूल के शंकर मेनन सभागार में आयोजित मासिक फ़िल्म स्क्रीनिंग में व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत में युवा गायक और आकाशवाणी कोम्पियर जिन्नी जोर्ज ने गिटार बजाते हुए इक़बाल फ़िल्म से आशाएं गीत गाकर सभी को रोमांचित कर दिया। उपस्थित समूह ने भी गीत गाकर साथ देते हुए सन्देश जताया कि अगर हम आशावान होकर आगे बढ़े तो इस क़ातिल दौर में कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसी मौके पर फ़िल्म सोसायटी की गतिविधियों पर बनायी गयी डॉक्युमेंट्री भी दिखाई गयी। मुख्य रूप से प्रदर्शित और मोहम्मद गनी द्वारा निर्देशित फीचर फ़िल्म क़ैद को विद्यार्थियों ने खूब सराहा। फ़िल्म में दिखे सहज अभिनय और सटीक सम्पादन की भी तारीफ़ की गयी।
फ़िल्म पर बाद में आयोजित चर्चा को अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के जिला समन्वयक मोहम्मद उमर ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारे विद्यार्थी जीवन में अध्यापक और कक्षा-कक्ष का अपना एक जादू हमेशा से रहा है।हिंदी सिने जगत की जागृति जैसी फ़िल्मों से लेकर तारे ज़मीं पर तक के सफ़र में अध्यापकों की भूमिका हम पर प्रभाव डालती है। कभी कभी कुछ आयोजन इतनी खूबसूरती से अपनी बात कह जाते हैं कि उन्हीं मुद्दों पर की जाने वाली तमाम कार्यशालाओं की तासीर भी कमतर लगती है। फिल्म का कथानक बेहतरीन है और बच्चों की शिक्षा, शिक्षक की भूमिका आदि मुद्दों पर बनी अब तक की पारंपरिक फिल्मों से दो कदम आगे की बात करती है। शिक्षा मे काम कर रहे साथी और एक अच्छा अभिभावक बन पाने की आकांक्षा रखने वाले सभी लोगों को यह फिल्म ज़रूर देखना चाहिए।
स्क्रीनिंग का संचालन करते हुए सोसायटी के साथी माणिक ने कहा कि फ़िल्म में इस घोर आस्थावादी समय में अच्छा भला विद्यार्थी समाज के द्वारा पागल घोषित कर दिया जाता है और हमारा पास-पड़ौस मौन रहता है यह हमारी बौद्धिक और तार्किक कंगाली का संकेत है। झाड़-फूँक में उलझी इस दुनिया को ठीक से देखोगे तो पाओगे कि यहाँ चारों तरफ ग़लतफहमियाँ पसरी पड़ी हैं जो हमें लगातार दिशा भ्रमित करती जा रही है। नरेन्द्र दाभोलकर को समर्पित यह फ़िल्म हमारी आँखें खोलने की मुहीम सरीखी अनुभव हुयी है।
फ़िल्म स्क्रीनिंग के सूत्रधार चित्रकला के प्राध्यापक और चित्तौड़गढ़ आर्ट सोसायटी के संयोजक मुकेश शर्मा और मनीष सैनी थे। इस अवसर पर सोसायटी के साथी और आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास, लेखाकार सी.एल.भंडारकर, अपनी माटी के उपाध्यक्ष अब्दुल ज़ब्बार, स्पिक मैके के सलाहकार नटवर त्रिपाठी, रामेश्वर पांड्या, अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के एकलव्य वाजपेयी,प्रीति और अपनी माटी संस्थान सचिव डालर सोनी सहित समानान्तर सिनेमा के कई रुचिशील दर्शक मौजूद थे।
डॉ.ए.एल.जैन,सलाहकार,चित्तौड़गढ़ फिल्म सोसायटी
मुद्दों पर केन्द्रित फ़िल्में ही सार्थक सिनेमा की पहचान है-डॉ.ए.एल.जैन
चित्तौड़गढ़ 1 मार्च 2015यह विचार चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी के सलाहकार डॉ.ए.एल.जैन ने अठाईस फरवरी शनिवार की शाम सैनिक स्कूल के शंकर मेनन सभागार में आयोजित मासिक फ़िल्म स्क्रीनिंग में व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत में युवा गायक और आकाशवाणी कोम्पियर जिन्नी जोर्ज ने गिटार बजाते हुए इक़बाल फ़िल्म से आशाएं गीत गाकर सभी को रोमांचित कर दिया। उपस्थित समूह ने भी गीत गाकर साथ देते हुए सन्देश जताया कि अगर हम आशावान होकर आगे बढ़े तो इस क़ातिल दौर में कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसी मौके पर फ़िल्म सोसायटी की गतिविधियों पर बनायी गयी डॉक्युमेंट्री भी दिखाई गयी। मुख्य रूप से प्रदर्शित और मोहम्मद गनी द्वारा निर्देशित फीचर फ़िल्म क़ैद को विद्यार्थियों ने खूब सराहा। फ़िल्म में दिखे सहज अभिनय और सटीक सम्पादन की भी तारीफ़ की गयी।
फ़िल्म पर बाद में आयोजित चर्चा को अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के जिला समन्वयक मोहम्मद उमर ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारे विद्यार्थी जीवन में अध्यापक और कक्षा-कक्ष का अपना एक जादू हमेशा से रहा है।हिंदी सिने जगत की जागृति जैसी फ़िल्मों से लेकर तारे ज़मीं पर तक के सफ़र में अध्यापकों की भूमिका हम पर प्रभाव डालती है। कभी कभी कुछ आयोजन इतनी खूबसूरती से अपनी बात कह जाते हैं कि उन्हीं मुद्दों पर की जाने वाली तमाम कार्यशालाओं की तासीर भी कमतर लगती है। फिल्म का कथानक बेहतरीन है और बच्चों की शिक्षा, शिक्षक की भूमिका आदि मुद्दों पर बनी अब तक की पारंपरिक फिल्मों से दो कदम आगे की बात करती है। शिक्षा मे काम कर रहे साथी और एक अच्छा अभिभावक बन पाने की आकांक्षा रखने वाले सभी लोगों को यह फिल्म ज़रूर देखना चाहिए।
स्क्रीनिंग का संचालन करते हुए सोसायटी के साथी माणिक ने कहा कि फ़िल्म में इस घोर आस्थावादी समय में अच्छा भला विद्यार्थी समाज के द्वारा पागल घोषित कर दिया जाता है और हमारा पास-पड़ौस मौन रहता है यह हमारी बौद्धिक और तार्किक कंगाली का संकेत है। झाड़-फूँक में उलझी इस दुनिया को ठीक से देखोगे तो पाओगे कि यहाँ चारों तरफ ग़लतफहमियाँ पसरी पड़ी हैं जो हमें लगातार दिशा भ्रमित करती जा रही है। नरेन्द्र दाभोलकर को समर्पित यह फ़िल्म हमारी आँखें खोलने की मुहीम सरीखी अनुभव हुयी है।
फ़िल्म स्क्रीनिंग के सूत्रधार चित्रकला के प्राध्यापक और चित्तौड़गढ़ आर्ट सोसायटी के संयोजक मुकेश शर्मा और मनीष सैनी थे। इस अवसर पर सोसायटी के साथी और आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास, लेखाकार सी.एल.भंडारकर, अपनी माटी के उपाध्यक्ष अब्दुल ज़ब्बार, स्पिक मैके के सलाहकार नटवर त्रिपाठी, रामेश्वर पांड्या, अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन के एकलव्य वाजपेयी,प्रीति और अपनी माटी संस्थान सचिव डालर सोनी सहित समानान्तर सिनेमा के कई रुचिशील दर्शक मौजूद थे।
डॉ.ए.एल.जैन,सलाहकार,चित्तौड़गढ़ फिल्म सोसायटी
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