द ग्रुप, जन
संस्कृति मंच और उदयपुर फ़िल्म सोसायटी के सयुंक्त तत्वावधान में आज आरएनटी मेडिकल
कॉलेज के सभागार में प्रतिरोध का सिनेमा के पहले उदयपुर फ़िल्म उत्सव का आगाज हुआ।
फिल्मोत्सव का आगाज उदयपुर फ़िल्म सोसायटी की प्रग्न्या, संगम और
पंखुड़ी के गाये ‘तू ज़िंदा है, तू ज़िंदगी
की जीत पे यकीन कर’ गाने के साथ हुआ।
उद्घाटन
सत्र में उदयपुर फ़िल्म उत्सव के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने सभी मेहमानों का
स्वागत करते हुए प्रतिरोध के सिनेमा और उदयपुर फ़िल्म उत्सव के बारे में अपनी बात रखी
और सभागार में मौजूद दर्शकों को बताया कि प्रतिरोध की ये फिल्में बड़े गहरे सवाल की
माफिक है जिन्हें देखने और उन पर चर्चा करने की जरूरत है। इन्होने आगे बताया कि उदयपुर
के लोगों के सहयोग की बदोलत ही आज इस फिल्मोत्सव का आयोजन संभव हो सका है। साथ ही
इन्होने यह भी कहा कि हमें सवाल पैदा करने वाले सिनेमा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता
है। इस सत्र में ‘दाएँ या बाएँ’ की
निर्देशक बेला नेगी ने प्रतिरोध का सिनेमा के साथ अपने जुड़ाव और अनुभव पर बात करते
हुए बताया कि प्रतिरोध के सिनेमा में उनकी फ़िल्म के प्रदर्शन के दौरान पाँच सौ से
सात सौ दर्शकों की उपस्थिति रही है, जबकि मुंबई और दिल्ली जगहों पर उनकी
फ़िल्म वितरकों के षडयंत्रों के कारण महज एक शो में चली है, इसके कारण
उन्हें अपेक्षानुरूप दर्शक भी नहीं मिले। इस मायने से प्रतिरोध का सिनेमा मुख्य
धारा के सिनेमा से बहुत आगे है और यह अपनी सार्थकता भी रखता है। इनके अनुसार
व्यावसायिक सफलता को ही असली सफलता का पर्याय मानना एक बड़ी गलतफहमी है।
इसी
सत्र में आगे द ग्रुप, जसम के राष्ट्रीय संजय जोशी ने प्रतिरोध के
सिनेमा को परिभाषित करते हुए कहा कि यह जनता का सिनेमा है, यह जनता
द्वारा चलाया जाता है और इसमें जनता के संघर्ष की कहानी है। इन्होने अपनी बात को
आगे बढ़ाते कहा कि हमें इस सिनेमा के विकास के लिए निरंतर सहयोग करने की जरूरत है
ताकि अगली बार इसके फिल्मोत्सव के आयोजन और बेहतर ढंग से किए जा सके और सिनेमा के
जरिये तमाम कला माध्यमों को समेटकर कुछ सार्थक किया जा सकता है। उद्घाटन सत्र में उदयपुर फ़िल्म सोसायटी की
चंद्रा भण्डारी ने सुप्रसिद्ध चित्रकार चित्तप्रसाद द्वारा बिमल राय की विख्यात फ़िल्म
‘दो बीघा जमीन’ के कथानक से प्रेरित यादगार चित्र
पर आधारित चित्रकार अशोक भौमिक द्वारा बनाए गए दो पोस्टरों का लोकार्पण किया और
इसके बाद फ़िल्मकार सूर्य शंकर दाश और बेला नेगी द्वारा इस दो दिवसीय फ़िल्मोत्सव की
स्मारिका का विमोचन किया गया।
उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता प्रख्यात दस्तावेजी फ़िल्मकार सूर्यशंकर दाश ने सरकार, न्यायपालिका, कॉर्पोरेट और मुख्यधारा मीडिया की मिलीभगत को उदाहरण सहित प्रस्तुत करते हुए उड़ीसा में जल, जंगल, जमीन की लूट में शामिल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के काले कारनामों के बारे में दर्शकों को बताया। सूर्य शंकर दाश ने कहा कि ये कंपनियाँ दोहरा चरित्र धारण किए हुए हैं, एक तरफ अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए यह फ़िल्म मेकिंग प्रशिक्षण और विभिन्न फ़िल्म उत्सवों को प्रायोजित करती हैं तो दूसरी ओर आदिवासी लोगों के संसाधनों को अपने कब्जे में करने के कुचक्र रचती हैं। उन्होने कॉर्पोरेट मीडिया द्वारा सूचनाओं को अपने कब्जे में करने तथा उन्हें जनता के सामने अनुकूलित बनाकर पेश करने की रणनीति को उजागर किया। उन्होने एक फ़िल्मकार की असल भूमिका को रेखांकित किया जो अपने केमरे द्वारा इस कॉर्पोरेट मीडिया के कुचक्र को ध्वस्त करता हैं।
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